Sunday 4 October 2015

Intazaar

इंतज़ार करुँगी तुम्हारा
चाहे देर से ही आना
ये वादा रहा हमारा
छोडूंगी न ये साथ तुम्हारा


इंतज़ार करुँगी मैं तुम्हारा
चाहे देर लगे तुम्हे
चाहे भीड़ में हो या अकेले
यूंही रहेगा ये रिश्ता हमारा

चाहे दिन कटे
या रातें बीतें
तेरा मेरा प्यार
है जीवन का सार

राह में प्यार की
नफरत ये कैसी
चीर के रख दूँगी
जो दुरी है जन्मी

दिल को है तेरी ही चाहत
फिर क्यों है तू जुदा जुदा
दिल करने लगे मन मरज़िया
फिर क्यों है तू खफ़ा खफ़ा

दिल करे बस एक तू हो यहाँ
और तेरी यादों का एक गुलदस्ता
दिल करे की दिन बीत जाये
और ये शाम यही थम जाये

ना तुझे खोने का डर हो
ना तुझसे जुदा होने का
तू यूंही साथ रहे हमेशा मेरे
और ये प्यार यूंही बरसता जाये

फिर लगाना ना जूठा इलज़ाम ये हम पर
की इंतज़ार के वक़्त खामोश क्यों रहे हम
एक तेरी ही आरज़ू एक तेरी ही तमन्ना
फिर क्यों रहे ये दुरी तेरे मेरे दरमियान ।।


प्राची